
पत्रकार की कलम: सत्ता के नशे में चूर नेताओं को आईना दिखाने वाली आवाज “कलम की धार: जब नेता बेपरवाह हों, तो पत्रकार ही सवाल करता है”
“वोट के बाद खामोशी क्यों? पत्रकार का सवाल सत्ता से”
“सत्ता की नींद तोड़ती पत्रकारिता की पुकार”
“नेताओं की जिम्मेदारी बनाम पत्रकार की जवाबदेही”
“चुनावी वादों से लेकर वादा-खिलाफी तक: पत्रकार की नजर से”
“जब नेता मुंह फेर लें, तो पत्रकार कलम से ललकारे”
“जनता की जुबान, पत्रकार की कलम”
“सच की आवाज़: सत्ता को आईना दिखाती पत्रकारिता”
“नेताओं से सवाल, कलम की मार”
“वोट मांगने आए थे, अब सवाल क्यों चुभ रहे हैं?”
आज जब लोकतंत्र को सिर्फ चुनावी मौसम तक सीमित कर दिया गया है, जब नेता वोट मांगने के वक्त गरीब की झोपड़ी में चाय पीते हैं और सत्ता में आने के बाद वातानुकूलित कार्यालयों में उनकी याद तक नहीं करते—ऐसे दौर में पत्रकार की कलम ही वह मजबूत औजार है, जो सच्चाई को उजागर करती है, सवाल खड़े करती है और उस खामोश जनता की आवाज बनती है, जिसे बार-बार ठगा गया है।
नेता चुनाव से पहले गली-गली घूमते हैं, हाथ जोड़ते हैं, झूठे वादों की पोटली लेकर घर-घर दस्तक देते हैं। लेकिन चुनाव जीतते ही उन्हें वह झुग्गी, वह किसान, वह मजदूर याद नहीं आता, जिसने अपना पेट काटकर उन्हें सत्ता सौंपी थी। दुर्भाग्य यह है कि सत्ता में बैठते ही उनके कान बंद हो जाते हैं और आंखें चुंधिया जाती हैं ऐशो-आराम की चकाचौंध में।
📌 लेकिन जब सत्ता और व्यवस्था गूंगी-बहरी हो जाए, तब पत्रकार की कलम बोलती है।
यह कलम न तो किसी दल की गुलाम है और न ही किसी पद की मोहताज। यह कलम वह सवाल उठाती है, जो जनता की जुबान पर होते हुए भी डर या बेबसी के कारण कहे नहीं जाते। पत्रकारिता केवल आलोचना का माध्यम नहीं है; यह समाज को दिशा देने वाला दर्पण है। जब सड़कों पर गड्ढे हों, अस्पतालों में दवा न हो, स्कूलों में शिक्षक गायब हों, और नेता कैमरे के सामने मुस्कुराते हों—तब कलम खामोश नहीं रह सकती।
पत्रकार का धर्म है सच्चाई दिखाना—चाहे वह किसी की तारीफ हो या किसी की पोल खोलना। अगर कोई प्रशासनिक अधिकारी या जनप्रतिनिधि अपना काम ईमानदारी से कर रहा हो, तो वही पत्रकार उसे भी मंच देता है, उसकी मेहनत को उजागर करता है। लेकिन जब वही नेता जनसेवा की जगह जनवंचना का रास्ता चुन लेता है, तब कलम तलवार बन जाती है।
🤝 पत्रकारों का उद्देश्य व्यवस्था को तोड़ना नहीं, सुधारना है।
अगर नेता अपने दायित्व का निर्वहन करें, अधिकारी ज़मीन पर काम करें, योजनाएं वास्तव में आमजन तक पहुंचे—तो पत्रकारों को कोई मज़बूरी नहीं कि वे उनकी गलतियां उजागर करें। लेकिन जब भरोसे के साथ विश्वासघात हो, तब चुप रह जाना भी पाप होता है।
इसलिए यह लेख केवल सत्ता को सवाल देने के लिए नहीं, बल्कि उसे आत्ममंथन के लिए भी आमंत्रण है।
हम पत्रकार हैं—हमारा कोई दल नहीं, हमारा धर्म है सच्चाई।
हमारी कलम न बिकती है, न रुकती है।
हम जनता के साथ थे, हैं और रहेंगे—क्योंकि यही हमारी निष्ठा है, यही हमारी पत्रकारिता।
🖋️ नोट: यह लेख न केवल पत्रकारिता की भूमिका को रेखांकित करता है, बल्कि उन सभी जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए एक सजग चेतावनी है कि लोकतंत्र में सबसे बड़ा डर कलम की स्याही से निकले सच का होता है।
आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा भारत बनाएं जहां सत्ता जवाबदेह हो, पत्रकार स्वतंत्र हों और जनता जागरूक।
✍️ लेखक: एलिक सिंह संपादक – वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज़
जिला प्रभारी – भारतीय पत्रकार अधिकार परिषद
📞 संपर्क: 821755408